The Conclusion

नन्हीं सी आँखे, कोमल सा बदन, मंद सी मुस्कान, चेहरे पर खिलखिलाहट। हाँ, कुछ ऐसी होती है लड़कियाँ जिसके आस पास रहने वाला हर शख्श खुशामदीद हो जाये। बचपन की बातें और बेबाक से सवाल बहुत खूब होते है। वैसे भी माना जाता है जहाँ कोई लड़की हो, उस घर का माहोल रोज़ उत्सव हो जाता है, जबकि लड़के होने पर एक ही बार उत्सव मनाया जाता है। हर त्यौहार पूरा है अगर भाई बहन की जोड़ी से, तो कुछ त्यौहार सिर्फ एक लड़की के होने से सम्पूर्ण होते है। दर्जा तो देवी का देते है, पूजते भी दुर्गा को है, पर बेटी को लक्ष्मी बनाया जाता है, दुर्गा नहीं।


जब वह छोटी होती है  बहुत खुश होती है, छोटी छोटी बातों में, पर जैसे जैसे वक़्त गहराता जाये कुछ सवाल से मन में तो आते है पर जुबान पर आने से पहले ही दबने शुरू होगये। प्राथमिकताएँ ज्यूँ बदलने लगी लोगों का डर हृदय में बढ़ना शुरू होगया। कोई क्या कहेगा अगर देर से घर आई! कैसे कपडे पहनो के तुम लड़की ही लगो, बंधे लंबे बाल, छुपती मस्तानी चाल रखो, नहीं तो तुम उन लड़को को बढ़ावा दे रही हो जो तुम्हारे साथ कुछ भी कर सकते है। बहुत अच्छे से सिखाया जाता है यह सब पर यह नहीं समझाया जाता के तुम्हे बेहतर जिंदगी के लिए तयार कर रहे है या तुम्हारे अपने शख्सियत मिटाने को!!


हम लड़कियों को खौफ के चलते घर से दूर या बाहर नहीं भेजते क्योंकि वह सुरक्षित नहीं है। क्या घर में टूटे सपनों के बिच वह सुरक्षित है! या जब एक महीने के अंदर हम शादी करा देते है तब सुरक्षित है! जब वह पढ़ लिख तो जाती है, पर कम नहीं कर पाती और घर के लोगों से हज़ारों बातें रोज़ सुनती है, तब सुरक्षित है! अजीब ही लगता है कभी कभी जानते है की बेटियां ज्यादा प्यार करती है, ओर आप उन पर अधिकार जमा सकते है और वो आपको प्रार्थमिक्ता देते हुए सब बातें अंदर रख लेंगी इसलिए अपना रोष, अधिकार और संस्कार उस पर जमाते है!


बहुत से लोग मेरी बात से सहमत नहीं होंगे क्योंकि मन से वह जानते है पर मानना नहीं चाहते की अगर आज इस देश की नारी सुरक्षित नहीं है तो उसका एक मूल कारण हमारी एक घटिया सोच है, चाहे वह औरत हो के मर्द दोनों की सोच का नतीजा है यह! उन्हें ऐसी परस्थि से बचने के तरीके नहीं बल्कि कैसे छुपाना है वो दाग सिखाते है, जिस दाग में उसका कोई योगदान भी नहीं! बचपन से हाथों में चूड़िया पहनाते है, पुरुष के लिए जो शर्मनाक बात है! हर बार पुरुष गलत नहीं होता, यह मैं भी मानती हूँ! हर बार लड़की गलत नहीं होती, यह मानने का जिगर तो दिखाओ। अधिकार जमाने वालो, इंसान बनके तो दिखाओ।


अगर प्यार है तो लड़का हो के लड़की दोनों को अधिकार देना भी सीखो। अपने बेटे बेटी को हर शख्स में भाई बहन दिखाने की जगह इंसान दिखाना सिखाओ। नहीं तो जो लड़के जिस लड़की में बहन देखना चाहेंगे उनमे तो देखेंगे बाकियों को फिर बुरी नजर से देखेंगे। इंसान दिखाओगे तो दूसरे की दुःख को समझेंगे। लड़की के अधिकार की बात नहीं उसके स्वाभिमान की बात है यह, हक़ की बात है। ये महज़ लड़की के हक़ की बात नहीं बल्कि हर माँ, बाप, भाई, बहन, हर रिश्ते के हक़ की बात है। यूँही नहीं एक लड़की को बाप की पगड़ी का दर्जा देते है, उसका वो दर्जा उसे देकर देखो। 


जिस जगह सिर्फ जताने का अधिकार है, ऐसी सोच वालों पर अब धिकार है।।
ऐ माँ, मुझे ना सीखा के कैसे तू चुप रही हर बार, इसको नहीं कहते है प्यार,
इसे कहते है के तूने अपना वजूद खो दिया, यूँही नहीं हर बार तेरा दिल रो दिया।।
ऐ बाबुल, मुझे समझाना कैसे बुरी नज़र से बचूँ, ना की अपने सपनों से ही डरूँ,
मुझे दुनिया से कोई वास्ता नहीं, पर तेरे कहने से लगता है मेरे पास ओर कोई जैसे रास्ता नहीं।।
अब मेरी नजर और नजरिया मेरे मोहताज़ है, झूठा नहीं जो मेरे सर पर ताज है,
कोई रोकेगा टोकेगा तो वह उसकी सोच, तानों के बिच नहीं रहना मुझे रोज़ रोज़।।।
नाम होगा एक दिन दुनिया जानेगी, मेरे माँ बाबुल को मेरे नाम से जानेगी,
उस दिन तेरा दिया जनम साकार होगा, जिस दिन हवस नहीं सीने में सिर्फ प्यार होगा।।।


शैलजा

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